रविवार, 8 मार्च 2015

ऐ लड़की.....

अर्चना, नन्दिनी, जया और उन जैसी तमाम स‍ाथियों के लिए....
जिनके जज्‍़बे और साहस को सलाम करता है अासमान...
तुम्‍हारे ही लिए मेरी साथी....


उफ... !
लड़की ने छू लिया अासमान....
अब क्‍या होगा.... !!!!!!

उफ...
ये क्‍या किया तूने ऐ लड़की...
बना ली अपनी छोटी सी दुनिया...
वैसे ही
जैसे तू चाहती थी....।

उफ....
ये क्‍या किया तूने ऐ लड़की....
तय कर लिए रास्‍ते...
अपने पांवों पर...

बिना किसी सहारे के....
पार कर लिए सागर
अकेले ही...
नाप लीं ब्रम्‍हांड की दूरिया...
चौंका दिया हमको...

तू आधी से पूरी बन गयी...
उफ....
ये क्‍या किया तूने ऐ लड़की....

छू लिया आकाश...
बन गयी चिडि़या....
उड़ चली नीले आसमान में...
भर ली पंखों में ढेर सी हवा....
नाप लिया सारा अाकाश....

उफ....
अच्‍छा किया तूने ऐ लड़की....
छू लिया अपना आकाश....
बना ली अपनी दुनिया...
रच लिया अपना संसार...
सुदूर कोने में...
नीले पहाड़ों के बीच...
जहां लहराते हैं झरने....
खिलखिलाता है मौसम....
आते हैं ज़लज़ले....
भेदते हुए हर दीवार....
जीतते हुए हर तूफ़ान...
तूने सजा ली एक छोटी सी दुनिया...

एक बड़े से काम के लिए....

सलाम है तुझे ऐ लड़की.....।

-अनुजा
08.03.2015

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

कुछ तो बताओ मुझे मेरे बारे में.....

जी चाहता है जानने को....
खोते-खोते अपने आपको...
अब
कुछ अपना आप रह ही नहीं गया है....

कुछ तुम
कुछ वह
कुछ सब
कुछ दुनिया
कुछ ग़मे रोज़गार....
कुछ प्रेम प्‍यार.. .
कुछ मौसम की मार...
समय की तक़रार...
कुछ, सब कुछ बेकार....


बस
इतना ही रह गया है....

मैं
खो गयी हूं....

कोई तो हो...
जो ढूंढ लाए मुझे....

कोई तो हो
जो मुझसे मिलाए मुझे....

कोई तो हो....
कोई तो...!!!!!!!


अनुजा

10.02.15

शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

पिता....


गर्म माथे पर रखा हुआ हाथ वो
सर्द कब हो गया कुछ पता न चला...

सब भिगोते रहे आंसुओं से ज़मीं
वो चला कब गया कुछ पता न चला...

एक मुद्दत रहा सायबां की तरह
कब हवा हो गया कुछ पता न चला...

उसकी नाराज़गी को न समझा कोई
क्‍यूं ख़फ़ा हो गया कुछ पता न चला....

उम्र भर तो कोई भी उसे न मिला
सब मिले जब उसे कुछ पता न चला...

अब ये पूछो अगर है कहां आजकल
क्‍या बताएं अभी कुछ पता न चला...

लौट आते हैं अक्‍सर मुसाफि़र सभी
वो कहां रह गया कुछ पता न चला...

उसके चेहरे का कुछ भी नहीं है कहीं
गुम किधर सब हुआ कुछ पता न चला...

अब हिदायत नहीं दे रहा है कोई 
सब धुआं क्‍यों हुआ कुछ पता न चला....

क्‍यूं थी फिक्रों से महरूम ये जि़न्‍दगी
वो चला जब गया ये पता तब चला....

- अनुजा
20.02.1997

सोमवार, 10 मार्च 2014

औरत...

अब कहो...
वो
चरित्रहीन थी...
चरित्र
को जोड़ दो देह से...
बहुत आसान है
औरत को
जोड़ देना चरित्र से...
और
चरित्र को देह से....

अनुजा
28.08.1998
भोर : 5: 00 

औरत...

सारी दुनिया को
अपनी गोद में छिपाए...
रत्‍नगर्भा के हिस्‍से में
नहीं है
कोई अपना आलोक....

अनुजा
03.05.1998