बुधवार, 15 जनवरी 2014

इंसान हूं मैं....

मैं क्या हूं.....

सूरज की एक किरन
फूल की एक पंखुड़ी
ओस की एक बूंद
हवा में उड़ता कोई आवारा पत्ता
आंधी का एक झोंका
आग की एक लपट
या
जीवन की एक धड़कन
मुझे आज कुछ भी नहीं पता अपना
अपने आप से अनजान मैं
अपनी ही तलाश में हूं इस सफर में

मैं अग्निशिखा अमृता
अब किसी अग्निपरीक्षा के लिए नहीं हूं
मैं न काली हूं
न दुर्गा
न गौरी
न भैरवी
न मैं याज्ञसेनी हूं
न गार्गी मैत्रेयी
न कात्यायनी
मैं इंसान हूं।

-अनुजा
2007


3 टिप्‍पणियां:

  1. चलो, तुमने कुछ पोस्ट तो किया...इतना अच्छा कहती हो...जल्दी-जल्दी लिखा करो.

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  2. अरे अनुजा,गलती से वह कमेन्ट सुदंर की आई.डी से पोस्ट हो गया.वह हमने किया है.
    नमिता

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  3. कोई बात नहीं....हां अंदाज़ से मैं थोड़ा चकित थी....।
    पर शुक्रिया...। ये बहुत पुरानी कविताएं हैं...., 13 तारीख को कुछ कविताएं नारी पर शमशेर के जन्‍मदिन की गोष्‍ठी के मौके पर कुछ मेरे लिए नई पर शायद शहर, साहित्‍य और फेस बुक के लिए पुरानी कवियत्रियों की सुनी तो याद आया कि कभी हमने भी लिखी थीं कुछ कविताएं....सो खोज कर पोस्‍ट कर दीं.....।
    हम तो कभी मान न पाए खुद को कवि...सो कभी बाहर लाने की हिम्‍मत भी नहीं हुई और कुछ अपने खास लोगों के अलावा कोई जानता भी नहीं....।

    पर तुरन्‍त ही आपकी टिप्‍पणी पाकर अच्‍छा लगा...

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