शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

तलाश.....

सूखे पत्तों की खरकन के बीच
तलाश
एक कोंपल की...
एक चिनगी की...
एक नर्म कली की...
एक बूंद ओस की...
चुटकी भर आस की...
एक गुलमोहरी सपने की...
अंजुरी भर चांदनी की...
कुछ ज़्यादा तो नहीं ना !
जीवन सा
सपने सा
या फिर
टूटती उम्मीद सा...!

अनुजा
08.07.07

9 टिप्‍पणियां:


  1. जीवन सा
    सपने सा
    या फिर
    टूटती उम्मीद सा...!------

    जब भी मन अकुलाता है तो, जीवन फिर से नए सिरे से जीने की
    तलाश में जुट जाता है,वह चाहे प्रेम हो,सुखद सपना हो या चहकती हुऐ हंसी
    उम्मीद कि तलाश जारी है-----
    बहुत सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर

    आग्रह है--- मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों--
    करवा चौथ का चाँद ------

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    1. ज्ररूर....मुझे खुशी होगी....किन्‍तु समयाभाव में गति धीमी हो सकती है....आपके ब्‍लॉग में कैसे शामिल हुआ जा सकता है....?

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  2. आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन गणेश शंकर विद्यार्थी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।

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  3. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति......

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