सूखे पत्तों की खरकन के बीच तलाश एक कोंपल की... एक चिनगी की... एक नर्म कली की... एक बूंद ओस की... चुटकी भर आस की... एक गुलमोहरी सपने की... अंजुरी भर चांदनी की... कुछ ज़्यादा तो नहीं ना ! जीवन सा सपने सा या फिर टूटती उम्मीद सा...!
जब भी मन अकुलाता है तो, जीवन फिर से नए सिरे से जीने की तलाश में जुट जाता है,वह चाहे प्रेम हो,सुखद सपना हो या चहकती हुऐ हंसी उम्मीद कि तलाश जारी है----- बहुत सुंदर रचना उत्कृष्ट प्रस्तुति सादर
आग्रह है--- मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों-- करवा चौथ का चाँद ------
जवाब देंहटाएंजीवन सा
सपने सा
या फिर
टूटती उम्मीद सा...!------
जब भी मन अकुलाता है तो, जीवन फिर से नए सिरे से जीने की
तलाश में जुट जाता है,वह चाहे प्रेम हो,सुखद सपना हो या चहकती हुऐ हंसी
उम्मीद कि तलाश जारी है-----
बहुत सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है--- मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों--
करवा चौथ का चाँद ------
ज्ररूर....मुझे खुशी होगी....किन्तु समयाभाव में गति धीमी हो सकती है....आपके ब्लॉग में कैसे शामिल हुआ जा सकता है....?
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन गणेश शंकर विद्यार्थी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंShukriya....!
हटाएंkuchh jyada toh nahi hai lekin fir bhi kitna muhskil hai ..
जवाब देंहटाएंawesome poem mem
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...पर आप कौन....परिचय दें कृपया...।
हटाएंबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंShukriya....!
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