बुधवार, 11 जनवरी 2012

सबसे ज्यादा पाई जाती हैं औरतें कविता में...

पर वो औरतों की कविता नहीं होतीं
उन कविताओं का विषय औरतें नहीं
होता है प्रेम .....
प्रेम भी औरतों का नहीं होता
होता है औरतों से प्रेम...,
सभी औरतों से प्रेम भी नहीं होता.
जब तक न हो उनमे एक ख़ास किस्म का औरतपन...,
हाँ ज़रूरी है इस औरतपन को देखने के लिए मर्दाना नज़र का होना..
इसीलिए तो मर्द लिखते हैं औरतों की कवितायेँ..
अनुपस्थिति हैं औरतों की कविताओं में औरतें..

तो औरतों की कवितायेँ कहाँ हैं..
क्यूँ नहीं इनकार कर देतीं वो मर्दों की कविता में आने से ,,
ओह् ! तो.. कविताओं में क़ैद हैं औरतें..
बाहर तो उनकी महज़ छायाएं हैं ...
और छायाओं से लिपटे पड़े हैं..
टूटे हुए शीशे ...गोरेपन की क्रीम..
माहवारी के बाद फेंके गए संक्रमित कपड़ों के पैड ..
गर्भ निरोधक गोलियां..सुडौल वक्ष के विज्ञापन..
और अनचाहे बाल हटाने के जादुई ब्लेड........

खूबसूरत कविताओं की दुनिया में औरतें कहाँ हैं..
या इतना ही बता दो..
जो औरतें खूबसूरत नहीं..वो कहाँ हैं..
औरतों की खूबसूरत दुनिया कहाँ है
औरतों की कवितायेँ कहाँ हैं..
सवाल ये भी है कि...''औरतें कहाँ हैं.''

तुम्हारी कविताओं में इतनी खुश्बू है..
कि बदबू आती है दोस्त...
कविता में बदबू होती तो कविता से बदबू नहीं आती..
कविता में बदबू को..
कविता में साझे प्रेम को...
कविता में जिंदगी को..
कविता में औरतों को आने दो...
औरतों की कविता को आने दो.......

दीपक कबीर



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