सोमवार, 14 नवंबर 2011

अशआर

मुहाफि़ज़ आ रहे हैं, रास्‍ते वीरान हो जाएं
कुछ इस्‍तक़बाल के उनके सरो-सामान हो जाएं।।

वो आशिक़ हैं हमारे ही औ पर्दा भी हमीं से है
ये हसरत है कि अब घर बे दर-ओ-दीवार हो जाएँ।।




दोस्‍तों से यही बस गिला रह गया
अजनबी सा कोई आश्‍ना रह गया।।

सब बिछुड़ते गए ख्‍़वाहिशों की तरह
राह में हमसफर रास्‍ता रह गया।।




अनुजा

2 टिप्‍पणियां:

  1. सब बिछुड़ते गए ख्‍़वाहिशों की तरह
    राह में हमसफर रास्‍ता रह गया।।....बहुत खूब!!

    जवाब देंहटाएं
  2. अंतिम सत्‍य भी शायद यही है निधि।
    केवल तुम ही पढ़ती हो शायद और कोई नहीं...।

    जवाब देंहटाएं