मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

प्‍यार पर.....


प्‍यार-

शायद
वे बोल सकें
प्‍यार पर....
जिन्‍हें
मिला हो
प्‍यार...
बदले में प्‍यार के...
छल नहीं...
अस्‍वीकृति नहीं...
जिनके लिए
दु:ख रहा हो
प्‍यार का खो जाना...
प्‍यार का
आना नहीं.... ।


प्‍यार-2


जि़न्‍दगी
की तपती दोपहरों में....
जिन्‍होंने
पाया हो प्‍यार का अमलतास....
महसूस किया हो
प्‍यार का गुलमोहर...
शायद
वे
बात कर सकें प्‍यार पर....
बुढ़ापे की
झुर्रियों के बीच भी
ढुलक आए
एक
आंसू से....।


प्‍यार-3

रजनीगंधा
की तरह....
गंधमय कर गयी हो
कभी
स्‍वीकृति
अपने प्‍यार की....
शायद
वे कह सकें....
कुछ
प्‍यार पर....
चांदी के तारों के पार
झांककर
अतीत में.....
खंगाल सकें
कहीं किसी
विवशता में
बिछुड़ गए
प्‍यार की खटमिट्ठी यादों को....
मुस्‍कराती
सुबहों को....
छलक पड़ती
दोपहरों को.....।


प्यार-4

वे क्‍या कहेंगे
प्‍यार पर....
जिनको
कभी
दुलराया न हो
मीठी थपकियों ने....
झुलाया न हो
दो बाहों ने.....
छल
रौंद कर चला गया हो
जिनका
प्‍यार....
बिंध कर मर गया हो
जिनका
एहसास.....
वे क्‍या कहेंगे
प्‍यार पर....।


प्यार-5

वे क्‍या कहेंगे
प्‍यार पर....
जिनके
प्‍यार की
टूटी हुई आत्‍मा
आहत उमंगों.....
पथराए सपनों...
बिखरी हुई
उम्‍मीदों के
पत्‍तों की खरकन के बीच
अब भी
किसी अंधे कुएं में
लटकी...
मुक्ति के
दुर्लभ क्षणों की
प्रतीक्षा में हो.....
वे
क्‍या कहेंगे प्‍यार पर....।


अनुजा
2002

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