रविवार, 18 सितंबर 2011

खोल दी हैं मुट्ठियां....

खोल दी हैं मुट्ठियां....
ले जाओ
जो
मिले जिसको....
जिसको....
मुट्ठी भर
पूस की धूप.....
अंजुरी भर शरद की चांदनी...
आंख भर
गुलमोहर से सपने....

खोल दी हैं मुट्ठियां....
छीन लो जिसको
मिले जो...
और
सजा लो अपनी महत्‍वाकांक्षाओं का आकाश....।


कामनाओं की
धुंधलाती दोपहर से...
चुक चुकी
मुसकान के
नीरव आकाश तक ....
तय करते हुए सफर
थक गए हैं पांव....
अब
तुम क्‍या...
अब तो
मैं भी नहीं हूं....
कहीं दूर तक
अपने लिए...
खो दिया है
अपनापन
कड़वी सच्‍चाइयों के
चुभते बबूलों के बीच....
अब
शेष नहीं है
कहीं कोई कामना...
नई कोई इच्‍छा...
पुराना
कोई सपना....।

अनुजा
12/11/1998

शनिवार, 17 सितंबर 2011

उसके लिए...

उसके लिए वो एक पल था....
तुम्‍हारे लिए शायद पूरी उम्र का एक सवाल...
तुम आज भी वहीं हो....
हर लम्‍हा....
तलाशते हुए जवाब...
कभी मुखर...
कभी मौन....
वो लौट गया है
अपनी अमराइयों में....
शायद पूरी निश्चिंतता के साथ....।

अनुजा

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

बूढ़े क्‍यों हो जाते हैं वसंत.....?

एक एहसास है...
एक आहट सी....
मन में.....
वसन्‍त तो कभी भी आ सकता है.....!
कुछ वसंत
मन को इतना जकड़ क्‍यों देते हैं.....
कि
किसी भी पलाश के लिए जगह ही नहीं बचती.... !

झरती रहती हैं पत्तियां जब ...
खिलता रहता है अमलतास....
जेठ की
तमतमाती धूप में भी....
फिर भी
ठिठक जाता है वसंत....
दहलीज के उस पार.....

कुछ वसंत
मन को इतना जकड़ क्‍यों देते हैं....

ढलता नहीं
रूक जाता है....
ठहर जाता है....
कहीं
रिश्‍तों के बीच....
कोई कोना वसंत का....
क़ैद हो जाता है
एक चौखट में....
मन की तो उम्र नहीं होती....
पर
रिश्‍तों की होती है....

जीने के लिए
छोड़ दिए जाते हैं वसंत पीछे.....
उम्र के साथ बढ़ते नहीं.....
ठिठके हुए वसंत.....
पर ठहर जाते हैं कहीं किसी मोड़ पर.....
रूककर चलते हुए.....
उम्र के साथ बढ़ते नहीं.....
फिर
बूढ़े क्‍यों हो जाते हैं वसंत....?
अनुजा
26.09.2010
फोटो: अनुजा

सोमवार, 12 सितंबर 2011

वो लड़की.....

कभी सोचो
उस
लड़की के बारे में
जि़न्‍दगी में
जिसकी आते हैं तमाम
संघर्ष
बाधाएं
ढेरों उलझनें...
अस्‍थायित्‍व की लड़खड़ाहट...
स्‍थायित्‍व के सारे
प्रयास
परिवार और समाज की बंदिशें....
पर
कभी नहीं दिखते
जिसे
विन्‍ध्‍य और सतपुड़ा के जंगल....
कनेर के
पीले खुश्‍बूदार रंग....
अपने सौन्‍दर्य के
सारे उत्‍ताप के साथ......।
नहीं होती
जो
वेरा, वनलता सेन सी...
नहीं होता कोई दांते...
नहीं आता
नीले आसमान का शोख नीलापन
जिसके पास रहता है
अनन्‍त शून्‍य ....
खालीपन.... ।
नहीं आता
जिसके पास
प्‍यार.........।
अनुजा
18.11.1999
-आलोक की कविताओं से गुज़रते हुए

रविवार, 11 सितंबर 2011

सवाल.........।

सवाल
आहत करते हैं हमें......

कभी-कभी
चीर भी देते हैं भीतर तक......
शायद
भयाक्रान्‍त भी करते हैं

सवाल...
और
कुछ उत्‍तर भी....
तो
क्‍या सवालों के मुहं पर
जड़ देना चा‍हिए
ताला......?????????

-अनुजा
15.07.1999