हर सुबह देखती हूँ
ज़मीन पर बिखरे हरसिंगार........
और सोचती हूं
सुख इतना क्षणिक क्यों होता है……?
खूबसूरत सुबहों का ये बिछोह……!
और कोई नहीं,
कि रूक कर देखे या पूछे……
अपनी शाख से बिछुड़कर कैसा लगता है तुम्हें.....?
अद्भुत है……
लाल सूरज और सफेद चांद का ये साथ…….
ज़मीन पर बिखरे हरसिंगार........
और सोचती हूं
सुख इतना क्षणिक क्यों होता है……?
खूबसूरत सुबहों का ये बिछोह……!
और कोई नहीं,
कि रूक कर देखे या पूछे……
अपनी शाख से बिछुड़कर कैसा लगता है तुम्हें.....?
अद्भुत है……
लाल सूरज और सफेद चांद का ये साथ…….
उगते सूरज ढलते चांद का ये खुशनुमा साथ
मिलना और बिछुड़ना एक साथ
नए सफ़र के लिए…..
मगर ये है……!यही है हरसिंगार……!
रात भर जो रहता है किसी शाख का मेहमान…..!
और
हर सुबह बिछुड़ जाता है….!
हर नन्हा फूल अकेला…..
अपने आप में, सबके साथ होकर भी……
आईने के सौ टुकड़े करके हमने देखे हैं की तरह……!
मत उदास हो….!
लौट जाओ जीवन की हरारत में..... हमारी रात की सुबह अभी नहीं हुई है ....!हमें तो चलना है न पिछली सुबह की याद के साथ......!तुम्हारी आंच मुझ तक आती है .....और तुम्हारी बारिश भी भिगोती है मुझे....!मगर हम सब अपनी जगह पर जमे बोनसाई हैं....अपनी दहलीजों में क़ैद.....!
हमारे सिर्फ शब्द पहुंचते हैं कानों तक .....
और शायद कभी ख़ामोशी भी......!आंखों तक उंगलियां नहीं जा पातीं.......!
मिलना और बिछुड़ना एक साथ
नए सफ़र के लिए…..
मगर ये है……!यही है हरसिंगार……!
रात भर जो रहता है किसी शाख का मेहमान…..!
और
हर सुबह बिछुड़ जाता है….!
हर नन्हा फूल अकेला…..
अपने आप में, सबके साथ होकर भी……
आईने के सौ टुकड़े करके हमने देखे हैं की तरह……!
मत उदास हो….!
लौट जाओ जीवन की हरारत में..... हमारी रात की सुबह अभी नहीं हुई है ....!हमें तो चलना है न पिछली सुबह की याद के साथ......!तुम्हारी आंच मुझ तक आती है .....और तुम्हारी बारिश भी भिगोती है मुझे....!मगर हम सब अपनी जगह पर जमे बोनसाई हैं....अपनी दहलीजों में क़ैद.....!
हमारे सिर्फ शब्द पहुंचते हैं कानों तक .....
और शायद कभी ख़ामोशी भी......!आंखों तक उंगलियां नहीं जा पातीं.......!
कभी ख़ामोशी को बहते और बोलते हुए सुनो....!
वहां है कुछ...तुम्हारे लिए.....
जीवन की तरह.......
बरगद की तरह........
ओस की ठंडक की तरह ....
अपनेपन की तरह......
लौट जाओ जीवन की गर्माहट में.......
सब हैं वहां तुम्हारे लिए.....
जिनकी ज़रूरत है तुमको.....!
वहां है कुछ...तुम्हारे लिए.....
जीवन की तरह.......
बरगद की तरह........
ओस की ठंडक की तरह ....
अपनेपन की तरह......
लौट जाओ जीवन की गर्माहट में.......
सब हैं वहां तुम्हारे लिए.....
जिनकी ज़रूरत है तुमको.....!
अनुजा
बहुत सुन्दर........हरसिंगार के फूल को यूँ चाँद और सूरज एक साथ ...के रूप में की गयी उपमा बहुत सुन्दर बन पडी है.....
जवाब देंहटाएंमगर हम सब अपनी जगह पर जमे बोनसाई हैं....
अपनी दहलीजों में क़ैद.....! कितनी पीड़ा है इस एक वाक्य में...मन को छू गया यह...कितना सच भी है ...हम सभी अपनी-अपनी दहलीजों में क़ैद हैं...कभी अपनी मर्जी से कभी दूसरों की ...
अपनी दहलीजों में क़ैद. .....utkrisht, maarmik !
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