रविवार, 28 अगस्त 2011

लौटा लाओ.......

माथे पर
तुम्‍हारा एक चुंबन...
अश्‍वत्‍थामा के रिसते ज़ख्‍़म पर
मरहम...
फिक्र के दो शब्‍द...
अपना ध्‍यान रखो.....
सुकून का एक झोंका.....
बाहों का एक आश्रय....
गले से लगी हुई
आत्‍मीयता.....
एक बार
फिर लौटा लाओ
वो कुछ
बीते पल .......!
अनुजा
02.08.11

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर........पर,बीता हुआ कुछ लौटा है क्या ,कभी ?

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  2. अगेय कहते है’मूर्ख होग वो कि जिसने चिर मिलन कि आस पाली,पा लिया ,अपना लिया है कौन ऐसा भाग्यशाली.’............जो कुच सुन्दर घटता है जीवन में उसे डिबिया में बंद बीरबहूटी सा ही सहेजा जा सकता है..

    अश्व्थामा....वाला प्रतीक खासा अच्छा बन पड़ा है.

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  3. शुक्रिया निधि।

    शुक्रिया भाभी, सही है....।

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